Friday, October 31, 2008

SCISSORS DOWN THE FOOT, NEEDLE TO THE BOSOM

SCISSORS DOWN THE FOOT, NEEDLE TO THE BOSOM read an article by the famous Tamil writer- speaker, Mr Suki Sivam. It ran like this.“ I once went abroad and on return, gifted a swiss scissor to my tailor who had requested it. Sometime later I visited him. I was upset that the expensive scissor I had presented to him was lying carelessly on the floor near his feet. I asked him why he was so careless about expensive articles. The tailor took time, and answered “ Sir, please pardon me if it hurt you. But I have to tell you this. In my shop I always keep the scissor on the floor, whatever be its cost” and before I could protest, he continued, “ Sir, look here ! ” he pointed out to his upper shirt pocket. On the pocket, a needle was neatly pinned. He said, “ do you know why I keep an in expensive needle on my bosom?” “Sir” he continued, “I give the needle respect because it joins (cloths). I threw down the scissor because it always separates and cuts”

Thursday, October 23, 2008

मैं आमंत्रित करता हूं उनको जो मुझको बेटा कहते हैं,
पोता या परपोता कहते हैं,
चाचा या तईयों को भी,
जो कूछ मैंने किया उसे वे जांचे परखे-


उसको मैंने शब्दों में रख दिया सामने-
क्या मैंने आपने बुजुर्गवारों के वारिस नुफ्ते को
शर्मिंदा या बर्बाद किया है?
जिन्हें मृत्यु ने दृष्टी पारदर्शी दे रखी
वे हीं जांच परख कर सकते
अधिकारी मैं नहीं
कि अपने पर निर्णय दूं,
लेकिन मैं संतुष्ट नहीं हूं


बच्चन

Tuesday, October 21, 2008

Love must shut out all others than the beloved...

I have not served God from fear of hell, for i should be like a wretched hireling, If I did it from fear; nor for love of paradise, for I should be a bad servant if I served for the sake of what was given. But I have served God only for the love of Him and desire for Him.............. Rabi'a

Saturday, October 18, 2008

A thing called Job satisfaction.........

मुझे उस दिन हंसी आई थी, जब किसी ने कहा था "मैं आपकी तरह नहीं हूं, मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं आपने जॉब से"....
अब ऐसा क्यों है की मैं असंतुष्ट हूं आपने जॉब से .....

मेरी परफॉर्मेंस काफी अच्छी है , अच्छे अच्छे अनुभवी लोग भी मेरी कद्र करते हैं, उच्च अधिकारी तक मेरी बात सुनते और मानते हैं, लोगो में इज्जत है, कर्मचारी बातें मानते और इज्जत करते हैं, हर वर्ष रेल सप्ताह में पुरस्कृत होते हैं, और अकेले अपने दम पे कोई भी कार्य संभल लेता हूं फिर भी ये असंतुष्टि क्यों......

शायद पर एक बात देखिये आप संतुष्ट हैं मैं असंतुष्ट.,... अब कूछ विस्मतायें दिखता हूं ..... अपनी और आपकी स्तिथि में............

आप की एक नियमित जिंदगी है, भले हीं समय कूछ भी हो .... हमारी कोई जिंदगी नहीं है .... एक फोन और बस चल वापस पटरी पे ... दोस्तों को बुलाया और खुद पटरी पे, बेचारे कूछ देर घुमाते रहे घर से बाहर कहाँ हो कहाँ हो करते, फिर अगले दिन से बोल चल बंद ..... याद नहीं कितने को खोया.. अब इस डर से किसी को बुलाना हीं छोड़ दिया है ..... कितनो को प्रोमिस की और पहुंचे ही नहीं उनके यहाँ .... अब बोलता हूं की आया तो बस बताते हैं पहले चार बार तो खाना बना कर फेंक चुके हैं तुम्हारे नाम पे अब और क्या ......

आप के लोग आपको प्यार करते हैं , इज्जत देते हैं, हमारे लोग भी इज्जत देते हैं पर.... सरकारी कर्मचारी काम करने से परेशान, नौकरी जाने का खतरा नहीं, सोचते हैं कोई दूसरा बंदा रहे तो ज्यादा बढ़िया कमसे कम, काम तो कम करना पड़ेगा, इसकी तो ईमानदारी से खुद इसको भी दिक्कत और हमें भी ... अब इस व्यस्था में ....

अधिकारी.... एक नाकारा और भ्रष्ट व्यस्था के पोषक हैं, ठेके पे काम और भ्रष्टाचार.. ज्यादा नहीं कहना चाहूँगा पर मेरे सिद्धांतो को ये ठेश पहुँचाती है.. और एक घुटन तो जरुर हीं महसूस होता है काम करते वक़्त की में कहीं ना कहीं इस देश के गरीब लोगो की मेहनत की कमाई का पैसा गलत ढंग से उपयोग करने में सहायक हो रहा हूं ....

काम.. विभागीय लोगो से काम लेना वह भी रेल की पटरियों पे जहाँ गन्दगी है.... सडे गले मानव और जानवरों के अवसेष है और गन्दगी ...... काफी कोशिस करी यूनियन के द्वारा .. की कमसे काम इन लोगो को ग्लोव्स और मास्क मिल जाएँ .. पर बेकार .. मालूम है पीलिया, कलर , तपेदिक जो इन परिस्तिथियों में काम करने से हो जातें हैं, पर व्यस्था .. क्या करें ... और आपनी अंतरात्मा को छोड़ कैसे काम करें ..... कैसे अमानवीय स्तिथियों में आदमियों से काम लेना क्या बितती है आपने ऊपर मैं हीं जनता हूं.. बात ये नहीं की मैं काम करावा लेता हूं बात उस बोझ की है .. जो उसके बाद अपने ऊपर आ जाती है.....


और हजारों शिकायतें खुद से नहीं पर इस सिस्टम से ... अब ये अलग बात है की इस सिस्टम में हम अच्छा परफोर्म कर रहे हैं .. अच्छी इमेज है पर .... अंतरात्मा खुश तो नहीं है ना ..... सो असंतुष्टि अपनी हर से नहीं बल्कि अपनी जीत से है ... इस व्यस्था का अंग बनाने से है .... और जिनसे लड़ना चाहिए उनके लिए काम करने से है और उन परिस्तिथियों का विरोध ना कर पाने से है जो मेरे देखने से गलत है ....

Friday, October 17, 2008

You my sister, I respect and love you....

I broke a promise, cheated on you, lied to you
I ain't recognize the goddess thats inside of you
I know sorry ain't do it but my acts of faith
Made me over-stare, hope it's not to late
I'm sorry, swear to god, please forgive me

Sister I'm sorry, swear to god, please forgive me....

Sister I'm sorry
For all the wrong I've done
Sister I'm sorry
I'm telling everyone
Sister I'm sorry
Nothing can change the past
Sister I'm sorry
Your forgiveness is all I ask

I'm so sorry
I'm so sorry for hurting you
For mistreating you
For not loving you
I'm so sorry

****Sticky Fingaz - Sister I'm Sorry****

Wednesday, October 15, 2008

We are conscious of beauty when there is a harmonious relation between something in our nature and the quality of the object which delight us........
Pascal......

Wednesday, October 1, 2008




Atirupena wai Sita atigarbena Ravanah
Atidanat Balibaddho ati sarbartra varjayet...
Chanakya Niti



मिटाना फितरत है हमारी मिट भी गए तो क्या
दीखता नहीं कितना टूटे हैं अब और टूटे तो क्या -
प्रदीप