Saturday, October 18, 2008

A thing called Job satisfaction.........

मुझे उस दिन हंसी आई थी, जब किसी ने कहा था "मैं आपकी तरह नहीं हूं, मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं आपने जॉब से"....
अब ऐसा क्यों है की मैं असंतुष्ट हूं आपने जॉब से .....

मेरी परफॉर्मेंस काफी अच्छी है , अच्छे अच्छे अनुभवी लोग भी मेरी कद्र करते हैं, उच्च अधिकारी तक मेरी बात सुनते और मानते हैं, लोगो में इज्जत है, कर्मचारी बातें मानते और इज्जत करते हैं, हर वर्ष रेल सप्ताह में पुरस्कृत होते हैं, और अकेले अपने दम पे कोई भी कार्य संभल लेता हूं फिर भी ये असंतुष्टि क्यों......

शायद पर एक बात देखिये आप संतुष्ट हैं मैं असंतुष्ट.,... अब कूछ विस्मतायें दिखता हूं ..... अपनी और आपकी स्तिथि में............

आप की एक नियमित जिंदगी है, भले हीं समय कूछ भी हो .... हमारी कोई जिंदगी नहीं है .... एक फोन और बस चल वापस पटरी पे ... दोस्तों को बुलाया और खुद पटरी पे, बेचारे कूछ देर घुमाते रहे घर से बाहर कहाँ हो कहाँ हो करते, फिर अगले दिन से बोल चल बंद ..... याद नहीं कितने को खोया.. अब इस डर से किसी को बुलाना हीं छोड़ दिया है ..... कितनो को प्रोमिस की और पहुंचे ही नहीं उनके यहाँ .... अब बोलता हूं की आया तो बस बताते हैं पहले चार बार तो खाना बना कर फेंक चुके हैं तुम्हारे नाम पे अब और क्या ......

आप के लोग आपको प्यार करते हैं , इज्जत देते हैं, हमारे लोग भी इज्जत देते हैं पर.... सरकारी कर्मचारी काम करने से परेशान, नौकरी जाने का खतरा नहीं, सोचते हैं कोई दूसरा बंदा रहे तो ज्यादा बढ़िया कमसे कम, काम तो कम करना पड़ेगा, इसकी तो ईमानदारी से खुद इसको भी दिक्कत और हमें भी ... अब इस व्यस्था में ....

अधिकारी.... एक नाकारा और भ्रष्ट व्यस्था के पोषक हैं, ठेके पे काम और भ्रष्टाचार.. ज्यादा नहीं कहना चाहूँगा पर मेरे सिद्धांतो को ये ठेश पहुँचाती है.. और एक घुटन तो जरुर हीं महसूस होता है काम करते वक़्त की में कहीं ना कहीं इस देश के गरीब लोगो की मेहनत की कमाई का पैसा गलत ढंग से उपयोग करने में सहायक हो रहा हूं ....

काम.. विभागीय लोगो से काम लेना वह भी रेल की पटरियों पे जहाँ गन्दगी है.... सडे गले मानव और जानवरों के अवसेष है और गन्दगी ...... काफी कोशिस करी यूनियन के द्वारा .. की कमसे काम इन लोगो को ग्लोव्स और मास्क मिल जाएँ .. पर बेकार .. मालूम है पीलिया, कलर , तपेदिक जो इन परिस्तिथियों में काम करने से हो जातें हैं, पर व्यस्था .. क्या करें ... और आपनी अंतरात्मा को छोड़ कैसे काम करें ..... कैसे अमानवीय स्तिथियों में आदमियों से काम लेना क्या बितती है आपने ऊपर मैं हीं जनता हूं.. बात ये नहीं की मैं काम करावा लेता हूं बात उस बोझ की है .. जो उसके बाद अपने ऊपर आ जाती है.....


और हजारों शिकायतें खुद से नहीं पर इस सिस्टम से ... अब ये अलग बात है की इस सिस्टम में हम अच्छा परफोर्म कर रहे हैं .. अच्छी इमेज है पर .... अंतरात्मा खुश तो नहीं है ना ..... सो असंतुष्टि अपनी हर से नहीं बल्कि अपनी जीत से है ... इस व्यस्था का अंग बनाने से है .... और जिनसे लड़ना चाहिए उनके लिए काम करने से है और उन परिस्तिथियों का विरोध ना कर पाने से है जो मेरे देखने से गलत है ....

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